दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों की जिंदगी में है अंधियारा, जानिए वजह

punjabkesari.in Monday, Oct 16, 2017 - 03:17 PM (IST)

इलाहाबादः दीपावली में दीयों से दूसरे के घरों को रोशन करने वाले कुम्हार 2 जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तमसो मा ज्योतिर्गमय वैदिक सूत्र को चरितार्थ कर अपने हाथों से दीपक बना कर दूसरों के घर रोशन करने वाले शिल्पी कुम्हारों के घरों में अंधियारा है। रोशनी का पर्व दीपावाली का आमतौर पर बड़ी उत्सुकता से इंतजार करने वाले कुम्हार बढ़ती महंगाई और दिए की जगह बिजली से जगमगाने वाले झालरों और बल्बों के वर्चस्व से खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

चाइनीज समान न खरीदने पर किया जागरूक
सस्ते और आकर्षक होने के कारण पिछले कई सालों से दीपावली पर चाइनीज निर्मित जगमगाने वाली झालरों, रंगीन मोमबत्तियों और टिमटिमाते बल्बों की खरीददारी की तरफ लोगों का रुझान बढ़ जाता है, लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान का समर्थन करने पर चाइनीज सामानों का विरोध शुरु हो गया है। जिससे लोगों को चाइनीज सामानों की खरीद-बिक्री नहीं करने के लिए जागरुक किया जा रहा है।

चिराग तले अंधेरे के समान कुम्हार की जिंदगी
चकिया निवासी घनश्याम प्रजापति ने बताया कि कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली त्यौहार में चार चांद लगाते रहे हैं, लेकिन बदलती जीवन शैली और आधुनिक परिवेश में मिट्टी को आकार देने वाला आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है। कुम्हार की जिंदगी चिराग तले अंधेरा के समान है।

कुम्हारी के कारोबार पर संकट 
उन्होंने बताया कि मिट्टी के अभाव में कुम्हारी के कारोबार पर संकट गहराया है। आस-पास मिट्टी की अनुपलब्धता से कारोबार 80 प्रतिशत खत्म हो गया है बाकी जो बचा है उसे सस्ते और आकर्षक चाइनीज आइटम ने चौपट कर दिया हैं। मिट्टी को बोरियों में शहर से 15-20 किलोमीटर दूर यमुना किनारे कछार से लाना पड़ता है। एक दशक पहले तक 500 रूपए में एक ट्रैक्टर ट्राली मिट्टी आसानी से मिल जाती थी। अब यही मिट्टी 5000 रूपए ट्राली मिलती है।

आर्थिक तंगी से जूझ रहे कुम्हार
इसकी उपलब्धता टेढ़ी खीर है। जहां परम्परागत मिट्टी के दीयों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है वहीं कुम्हारों के जीवन में अंधेरा गहराता जा रहा है। लोग केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए मिट्टी के दीए खरीदते हैं। मेहनत और लागत के अनुसार आमदनी के अभाव में कुम्हार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है।


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